एक वक्त था जब हमे खुद की घर बड़ी लगती थी।
जब हम शहरों में रहते और घर खाली पड़ी रहती थी।।
लोग भागते हैं खुद की सपनों को सच करने के लिए।
जो कभी कमाए थोड़े पैसे उसे ख़र्च करने के लिए।।
महामारी भरी समाज मे मन कुछ उलझा सा,सोच सोच कर दुनिया के बारे में मन कुछ थका सा है ।
शोर रहती थी जिन सड़को में आज सब शांत है,जिंदगी हर रोज नई दिशा में चलती थी वह अब रुका सा है।।
मन मे एक चिंताओं की लहर सी उठ रही है, जो हर पल हर क्षण और भी तीव्र होती चली जा रही है।
एक सहारा है वैक्सीन की जो बचा ले हमे क्योंकि सारा जहां अपना अस्तित्व खोती चली जा रही है।।
ये गर्मी का दिन और lockdown का मौसम और तड़के की धूप फिर भी मन मे एक उत्साह कुछ करने का जुनून कुछ सपनों को हकीकत करने की जिद
रुके हुए पैरों को चलने हेतु प्रेरित करती हुई जिम्मेदारीया
मन को हारने नही देती।
कहीं न कहीं हलचल भरी इस दुनिया मे
एक शांत मन अपनी उम्मीदों ,अपनी सपनों और अपनी भूख
को सम्पूर्णता दिलाने के लिए जद्दोजहद कर रही है ,
जो कर्म पथ से खुद को भागने नही देती।
- मोतीराम