Search This Blog

Thursday, March 21, 2019

होली



होली का त्यौहार
 



                     होली प्राचीन हिंदू त्यौहारों में से एक है यह त्यौहार रंगों का पावन त्यौहार है। और यह त्यौहार कई सदियों पहले से मनाया जा रहा है। होली का वर्णन जैमिनि के पूर्वमिमांसा सूत्र और कथक ग्रहय सूत्र में भी है।

प्राचीन भारत के मंदिरों की दीवारों पर भी होली की मूर्तियां बनी हैं। ऐसा ही 16वीं सदी का एक मंदिर विजयनगर की राजधानी हंपी में है। इस मंदिर में होली के कई दृश्य हैं जिसमें राजकुमार, राजकुमारी अपने दासों सहित एक दूसरे पर रंग लगा रहे हैं।

कई मध्ययुगीन चित्र, जैसे 16वीं सदी के अहमदनगर चित्र, मेवाड़ पेंटिंग, बूंदी के लघु चित्र, सब में अलग अलग तरह होली मनाते देखा जा सकता है।

होली के रंग


पहले होली के रंग टेसू या पलाश के फूलों से बनते थे और उन्हें गुलाल कहा जाता था। वो रंग त्वचा के लिए बहुत अच्छे होते थे क्योंकि उनमें कोई रसायन नहीं होता था। लेकिन समय के साथ रंगों की परिभाषा बदलती गई। आज के समय में लोग रंग के नाम पर कठोर रसायन का उपयोग करते हैं। इन खराब रंगों के चलते ही कई लोगों ने होली खेलना छोड़ दिया है। हमें इस पुराने त्यौहार को इसके सच्चे स्वरुप में ही मनाना चाहिए।


होली का त्यौहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसोंखिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है।गुझिया होली का प्रमुख पकवान है जो कि मावा (खोया) और मैदा से बनती है और मेवाओं से युक्त होती है इस दिन कांजी के बड़े खाने व खिलाने का भी रिवाज है। नए कपड़े पहन कर होली की शाम को लोग एक दूसरे के घर होली मिलने जाते है जहाँ उनका स्वागत गुझिया,नमकीन व ठंडाई से किया जाता है। होली के दिन आम्र मंजरी तथा चंदन को मिलाकर खाने का बड़ा माहात्म्य है।
फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं।‘रंगों के त्यौहार’ के तौर पर मशहूर होली का त्योहार फाल्गुन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। तेज संगीत और ढोल के बीच एक दूसरे पर रंग और पानी फेंका जाता है। भारत के अन्य त्यौहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार होली का त्योहार, हिरण्यकश्यप की कहानी जुड़ी है


होली का इतिहास


हिरण्यकश्यप प्राचीन भारत का एक राजा था जो कि राक्षस की तरह था। वह अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेना चाहता था जिसे भगवान विष्णु ने मारा था। इसलिए अपने आप को शक्तिशाली बनाने के लिए उसने सालों तक प्रार्थना की। आखिरकार उसे वरदान मिला। लेकिन इससे हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझने लगा और लोगों से खुद की भगवान की तरह पूजा करने को कहने लगा। इस दुष्ट राजा का एक बेटा था जिसका नाम प्रहलाद था और वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। प्रहलाद ने अपने पिता का कहना कभी नहीं माना और वह भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। बेटे द्वारा अपनी पूजा ना करने से नाराज उस राजा ने अपने बेटे को मारने का निर्णय किया। उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि वो प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए क्योंकि होलिका आग में जल नहीं सकती थी। उनकी योजना प्रहलाद को जलाने की थी, लेकिन उनकी योजना सफल नहीं हो सकी क्योंकि प्रहलाद सारा समय भगवान विष्णु का नाम लेता रहा और बच गया पर होलिका जलकर राख हो गई। होलिका की ये हार बुराई के नष्ट होने का प्रतीक है। इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया, इसलिए होली का त्योहार, होलिका की मौत की कहानी से जुड़ा हुआ है। इसके चलते भारत के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होली जलाई जाती है।

लेकिन रंग होली का भाग कैसे बने?

              यह कहानी भगवान विष्णु के अवतार भगवान कृष्ण के समय तक जाती है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण रंगों से होली मनाते थे, इसलिए होली का त्योहार रंगों के रूप में लोकप्रिय हुआ। वे वृंदावन और गोकुल में अपने साथियों के साथ होली मनाते थे। वे पूरे गांव में मज़ाक भरी शैतानियां करते थे। आज भी वृंदावन जैसी मस्ती भरी होली कहीं नहीं मनाई जाती।
              होली वसंत का त्यौहार है और इसके आने पर सर्दियां खत्म होती हैं। कुछ हिस्सों में इस त्यौहार का संबंध वसंत की फसल पकने से भी है। किसान अच्छी फसल पैदा होने की खुशी में होली मनाते हैं। होली को ‘वसंत महोत्सव’ या ‘काम महोत्सव’ भी कहते हैं।

            होली एक दिन का त्यौहार नहीं है। कई राज्यों में यह तीन दिन तक मनाया जाता है। तथा कई राज्यों में पाँच दिनों तक इस त्यौहार को मनाया जाता है ।।


✍✍


Saturday, March 9, 2019

आज का युवा



 
              
  युवावस्था जिंदगी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अवस्था होता है । इस अवस्था का हर युवक वर्ग ,केवल देश की शक्ति ही नहीं, बल्कि वहाँ की सांस्कृतिक आत्मा का प्रतीक भी होता है ।युवा वर्ग किसी भी काल या देश का आईना होता है जिसमें हमें उस युग का भूत, वर्तमान और भविष्य , साफ़ दिखाई पड़ता है । इनमें इतना जोश रहता है कि ये किसी भी चुनौती को स्वीकारने के लिये तैयार रहते हैं । चाहे वह कुर्बानी ही क्यों न हो, नवयुवक अतीत का गौरव और भविष्य का कर्णधार होता है और इसी में यौवन की सच्ची सार्थकता भी है ।हमेशा जोश और जुनून से सराबोर रहने वाली युवा पीढ़ी ही देश का भविष्य होती है

            आंखों में उम्मीद के सपने, नयी उड़ान भरता हुआ मन, कुछ कर दिखाने का दमखम और दुनिया को अपनी मुठ्ठी  में करने का साहस, हरदम कुछ नया कर गुजरने की चाहत, नित नई-नई चुनौतियों का सामना करने तैयार रहना और जो एक बार करने की ठान लें तो लाख मुश्किलें भी उसको बदल न पाएं। शायद आज की युवा पीढ़ी को अपनी इस शक्ति का अंदाजा नहीं है। देश की युवा शक्ति ही समाज और देश को नई दिशा देने का सबसे बड़ा औजार है। वह अगर चाहे तो इस देश की सारी रूप-रेखा बदल सकती है। अपने हौसले और जज्बे से समाज में फैली विसंगतियों, असमानता, अशिक्षा, अपराध आदि बुराइयों को जड़ से उखाड़ फेंक सकती है। युवा शब्द ही मन में उडान और उमंग पैदा करता है। उम्र का यही वह दौर है जब न केवल उस युवा के बल्कि उसके राष्ट्र का भविष्य तय किया जा सकता है। आज के भारत को युवा भारत कहा जाता है क्योंकि हमारे देश में असम्भव को संभव में बदलने वाले युवाओं की संख्या  सर्वाधिक है।



                  आंकड़ों के अनुसार भारत की 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 वर्ष आयु तक के युवकों की और 25 साल उम्र के नौजवानों की संख्या 50 प्रतिशत से भी अधिक है। ऐसे में यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि युवा शक्ति वरदान है या चुनौती? महत्वपूर्ण इसलिए भी यदि युवा शक्ति का सही दिशा में उपयोग न किया जाए तो इनका जरा सा भी भटकाव राष्ट्र के भविष्य को अनिश्चित कर सकता है।
लेकिन आज युवा पीढ़ी शायद इन बातों से अनजान है। एक ओर वह अपने कैरियर को बेहतर दिशा देने के लिए संघर्षरत है, कड़ी मेहनत करती है और जोश, जुनून, दृढ़ संकल्प, इच्छाशक्ति से अपने लक्ष्य को पाने का हौसला रखती है वहीँ कुछ युवा नशा, वासना, लालच, हिंसा के कर्म में शामिल हो गए हैं। पैसे वालों के लिए एडवेंचर और मनोरंजन जीवन का मुख्य ध्येय बन रहे हैं और उनकी देखादेखी विपन्न युवा भी यही आकांक्षा पाल बैठा है।

                     स्वामी विवेकानंद युवाओं से बहुत प्यार करते थे। वे कहा करते थे विश्व मंच पर भारत की पुनर्प्रतिष्ठा में युवाओं की बहुत बड़ी भूमिका है। विवेकानंद का मत था- मंदिर जाने से ज्यादा जरूरी है युवा खेल खेले। युवाओं के स्नायु फौलादी होना चाहिए क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है। दुर्भाग्य से आज अधिसंख्य लोगों के जीवन से खेल-कूद, व्यायाम दूर होते जा रहे हैं। आज तो पूरे-पूरे दिन ही मोबाइल, इंटरनेट, फेसबुक, व्हाट्स एप, ट्विटर आदि युवाओं को व्यस्त रखते हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि हमारा युवा इस देश की परिस्थियों को ठीक से समझे।

                युवाओं को देश के सभु क्षेत्रों में अपनी सहभागिता देनी चाहिए ।  समाज और देश निर्माण में अपना योगदान करना होगा। देश सीमा रेखा भर तो नहीं होता। वह समाज और मनुष्यों से निर्मित होता है। आज के युवा को अपनी उन्नति और प्रगति के साथ इस भारत का नक्शा बदलने का संकल्प लेना होगा तभी यह भारत दुनिया का सिरमौर बन सकेगा। तभी हम सच्चे अर्थों में आजादी का आनंद ले पाएंगे।

   

Thursday, March 7, 2019

बिलासपुर लोकसभा सीट का इतिहास

   

बिलासपुर लोकसभा सीट का इतिहास



बिलासपुर लोकसभा सीट बीजेपी का गढ़ रही है। मौजूदा सांसद लखन लाल साहू से पहले यह सीट दिलीप सिंह जूदेव ने जीती थी। साल 2013 में उनका देहांत हो गया था। साल 1996 के बाद लगातार बिलासपुर से चार बार बीजेपी के सांसद रहे पुन्नूलाल मोहले। उनसे पहले 1989 में रेशमलाल जांगड़े बीजेपी के टिकट पर चुने गये थे। बाकी समय कांग्रेस इस सीट पर काबिज रही है। सिर्फ 1962 को छोड़कर, जब निर्दलीय सत्य प्रकाश ने बिलासपुर से जीत दर्ज की थी। बिलासपुर सीट से निर्दलीय जीतने वाले वे अब तक के इकलौते सांसद हैं। लखन लाल साहू ने बिलासपुर सीट से करुणा शुक्ला मात दी थी। करीब पौने दो लाख वोटों से उन्हें हराया था। करुणा शुक्ला पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी हैं। पहले बीजेपी में हुआ करती थीं। अब कांग्रेस में हैं। माना जाता है कि बिलासपुर जैसी सीट पर किसी सवर्ण को उम्मीदवार बनाना कांग्रेस का गलत दांव साबित हुआ। इस लोकसभा क्षेत्र में ओबीसी वोटरों का दबदबा है। तकरीबन 50 फीसदी आबादी ओबीसी की है।


   बिलासपुर से मौजूदा सांसद भाजपा के लखन लाल साहू  2014 के आम चुनाव में बिलासपुर में 17 लाख 27 हज़ार से ज्यादा मतदाता थे। इनमें पुरुष मतदाताओं की तादाद 8 लाख 89 हज़ार से ज्यादा थी। 63 फीसदी मतदान हुआ था। यानी कुल 10 लाख 90 हज़ार से ज्यादा लोगों ने वोट डाले थे। इनमें लखन लाल साहू ने 5 लाख 61 हज़ार से ज्यादा वोट हासिल किए थे। यानी 50 फीसदी से ज्यादा वोट बीजेपी उम्मीदवार को मिले। बिलासपुर में आदिवासी मतदाताओँ का प्रतिशत 13.97 फीसदी है तो अनुसूचित जाति वर्ग के वोटरों के मतदाता यहां 22.22 प्रतिशत है।


लखनलाल साहू का लोकसभा में प्रदर्शन

लखनलाल साहू ओबीसी सांसद हैं। पिछले पांच साल में संसद में 86 बार उन्होंने बहस में हिस्सा लिया है। वहीं 208 सवाल उन्होंने लोकसभा में पूछे हैं। संसद में उपस्थिति के मामले में उनका प्रदर्शन कहीं बेहतर है। 87 फीसदी उपस्थिति सांसद लखन लाल साहू के नाम दर्ज है। सांसद निधि के उपयोग के उन्होंने पूर्ण उपयोग करने में असमर्थ रहे हैं। निधि से बिलासपुर में 25 करोड़ से ज्यादा की राशि जिलाधिकारी ने मंजूर की है। अभी भी दो करोड़ की राशि खर्च होना बाकी है।

बिलासपुर में 8 विधानसभा की सीटें हैं। जिसमे उम्मीदवारो की कमी नही है ।ये बात साफ है कि 2019 में भले ही पूरे प्रदेश में कांग्रेस की लहर देखने को मिली हो, लेकिन प्रदेश में अभी भी लोगो मे भाजपा की चाह गई नही है।


               गत वर्ष बीते आंकड़ों से यही लगता है कि बिलासपुर में भाजपा से नही उम्मीदवार से जनता नाखुश है। जिसका असर विधानसभा में देखने को मिला । अगर भाजपा को अपनी गद्दी बचानी है तो उनको एक नए चेहरे को मौका देना चाहिए । जो समाज व लोगो से जुड़े रहकर उनकी परिस्थितियों के अनुसार जनता तक जाकर उनकी सेवा कर सके।।

अब भविष्य ही बतायेगी की अबकी बार बिलासपुर की गद्दी जनता किसके साथ हाथो सौपेंगी।।




Wednesday, March 6, 2019

पटवारी की तैयारी कैसे करें?

पटवारी चयन परीक्षा का प्रारूप

बहुचर्चित परीक्षा पटवारी चयन परीक्षा में हिन्दी, अंग्रेजी सहित कुल 5 विषयों का पेपर होता हैं जो इस प्रकार हैं |


  • Hindi (हिन्दी)
  • English (अंग्रेजी)
  • Mathematics (गणित)
  • Computer (कंप्यूटर)
  • General Knowledge & current affairs (सामान्य ज्ञान एवं सामयिकी)
उपरोक्त पांचों विषयों के कुल 100 वैकल्पिक प्रश्न पूछें जाते हैं जो कि आपको 1घंटा एवं 30 मिनट में हल करना होते हैं |

पटवारी चयन परीक्षा का पाठ्यक्रम/Syllabus

ये हैं पटवारी चयन परीक्षा का पाठ्यक्रम
  • सामान्य ज्ञान
  • सामान्य गणित व सामान्य अभिरुचि
  • सामान्य हिन्दी
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं पंचायती राज
  • कम्प्यूटर विज्ञान
  • पटवारी परीक्षा की तैयारी कैसे करें

Patwari ki taiyari kaise karen

जैसा कि आपने ऊपर देखा कि इस परीक्षा का पाठ्यक्रम इतना ज्यादा कठिन भी नहीं हैं | अगर आपके पास किसी कोचिंग/क्लास जाने का समय नहीं हैं या किसी अन्य कारण से आप वहां जाकर तैयारी नहीं कर सकते तो भी आप बिना कोचिंग जाये भी तैयारी कर सकते हैं |
हिन्दी एवं अंग्रेजी के लिए आपको व्याकरण/ग्रामर का अध्यन करना होगा | अगर आप हिन्दी माध्यम के छात्र हैं तो थोडा मेहनत इंग्लिश में करना होगी जिसमे आप सबसे ज्यादा प्रेक्टिस यदि पेरेग्रफ को पढ़ कर उसके जवाब देने की करें तो बेहतर होगा |
सामान्य गणित व सामान्य अभिरुचि में सफल होने के लिए आपको प्रेक्टिस की जरुरत होती यदि आप 2 से 25 या 30 तक के पहाड़े याद कर सकते हैं तो फिर आपको इस पेपर को करने में ज्यादा समय नहीं लगेगा | इसके आलावा सामान्य गणित के सवाल जैसे प्रतिशत आदि की तैयारी करें |
कंप्यूटर एवं करंट अफेयर्स के लिए आपको इन्टरनेट एवं कंप्यूटर पर काफी मटेरियल मिल जायेगा आप इसके लिए गूगल सर्च करके पता कर सकते हैं एवं न्यूज़ एवं समाचार पत्रों को भी पढ़ना ना भूलें |

तो ये कुछ सामान्य जानकारी थी जिसको ध्यान में रख कर यदि आप तैयारी करेंगे तो जरुर सफल होंगे | हमारी शुभकामनायें आपके साथ हैं| 
https://rashrta.blogspot.com/2019/02/blog-post_26.html

खुशियों की सौगात

  फूल कोई तुम्हे भी मिल जाएगा  सब्र थोड़ा करो वह खिल जाएगा  राह में उनसे हसकर मिलो तो जरा, जख्म दिल के सभी सील जाएगा। तुमको पा लेना बस तो मु...