बिलासपुर लोकसभा सीट का इतिहास
बिलासपुर लोकसभा सीट बीजेपी का गढ़ रही है। मौजूदा सांसद लखन लाल साहू से पहले यह सीट दिलीप सिंह जूदेव ने जीती थी। साल 2013 में उनका देहांत हो गया था। साल 1996 के बाद लगातार बिलासपुर से चार बार बीजेपी के सांसद रहे पुन्नूलाल मोहले। उनसे पहले 1989 में रेशमलाल जांगड़े बीजेपी के टिकट पर चुने गये थे। बाकी समय कांग्रेस इस सीट पर काबिज रही है। सिर्फ 1962 को छोड़कर, जब निर्दलीय सत्य प्रकाश ने बिलासपुर से जीत दर्ज की थी। बिलासपुर सीट से निर्दलीय जीतने वाले वे अब तक के इकलौते सांसद हैं। लखन लाल साहू ने बिलासपुर सीट से करुणा शुक्ला मात दी थी। करीब पौने दो लाख वोटों से उन्हें हराया था। करुणा शुक्ला पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी हैं। पहले बीजेपी में हुआ करती थीं। अब कांग्रेस में हैं। माना जाता है कि बिलासपुर जैसी सीट पर किसी सवर्ण को उम्मीदवार बनाना कांग्रेस का गलत दांव साबित हुआ। इस लोकसभा क्षेत्र में ओबीसी वोटरों का दबदबा है। तकरीबन 50 फीसदी आबादी ओबीसी की है।
बिलासपुर से मौजूदा सांसद भाजपा के लखन लाल साहू 2014 के आम चुनाव में बिलासपुर में 17 लाख 27 हज़ार से ज्यादा मतदाता थे। इनमें पुरुष मतदाताओं की तादाद 8 लाख 89 हज़ार से ज्यादा थी। 63 फीसदी मतदान हुआ था। यानी कुल 10 लाख 90 हज़ार से ज्यादा लोगों ने वोट डाले थे। इनमें लखन लाल साहू ने 5 लाख 61 हज़ार से ज्यादा वोट हासिल किए थे। यानी 50 फीसदी से ज्यादा वोट बीजेपी उम्मीदवार को मिले। बिलासपुर में आदिवासी मतदाताओँ का प्रतिशत 13.97 फीसदी है तो अनुसूचित जाति वर्ग के वोटरों के मतदाता यहां 22.22 प्रतिशत है।
लखनलाल साहू का लोकसभा में प्रदर्शन
लखनलाल साहू ओबीसी सांसद हैं। पिछले पांच साल में संसद में 86 बार उन्होंने बहस में हिस्सा लिया है। वहीं 208 सवाल उन्होंने लोकसभा में पूछे हैं। संसद में उपस्थिति के मामले में उनका प्रदर्शन कहीं बेहतर है। 87 फीसदी उपस्थिति सांसद लखन लाल साहू के नाम दर्ज है। सांसद निधि के उपयोग के उन्होंने पूर्ण उपयोग करने में असमर्थ रहे हैं। निधि से बिलासपुर में 25 करोड़ से ज्यादा की राशि जिलाधिकारी ने मंजूर की है। अभी भी दो करोड़ की राशि खर्च होना बाकी है।
बिलासपुर में 8 विधानसभा की सीटें हैं। जिसमे उम्मीदवारो की कमी नही है ।ये बात साफ है कि 2019 में भले ही पूरे प्रदेश में कांग्रेस की लहर देखने को मिली हो, लेकिन प्रदेश में अभी भी लोगो मे भाजपा की चाह गई नही है।
गत वर्ष बीते आंकड़ों से यही लगता है कि बिलासपुर में भाजपा से नही उम्मीदवार से जनता नाखुश है। जिसका असर विधानसभा में देखने को मिला । अगर भाजपा को अपनी गद्दी बचानी है तो उनको एक नए चेहरे को मौका देना चाहिए । जो समाज व लोगो से जुड़े रहकर उनकी परिस्थितियों के अनुसार जनता तक जाकर उनकी सेवा कर सके।।
अब भविष्य ही बतायेगी की अबकी बार बिलासपुर की गद्दी जनता किसके साथ हाथो सौपेंगी।।
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