राहगीरों की महफ़िल में मैं जब भी बैठ जाता हूं,
दुनिया भर की महल अटारी अमीरी भूल जाता हूं।
साथ मे इनके यूं मस्त मगन हो काफिर बन जाता हूं,
जीवन की ये रीत सिखाते मैं मुसाफिर बन जाता हूं।।
देख जमाने की रुसवाई आंख भी भर आता है,
दुनिया की इस लाचारी से मेरा मन बड़ा घबराता है,
लाले पड़े हैं रहने के ,कपड़ो के और निवालों के,
पीड़ा सुन सुन मैं अंतर्मन से दुखी हो जाता हूं।।
राहगीरों की महफ़िल में मैं जब भी बैठ जाता हूं
दुनिया भर की महल अटारी अमीरी भूल जाता हूं।।
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कुछ बच्चे हैं जिनको पढ़ना है कुछ को आगे बढ़ना है
कमी यहाँ है पैसों की कुछ को पत्थर पर सिर मढ़ना है
बातें सुन सुन बच्चों की माँ बाप के आंसू आते हैं
जब उन्हें छोड़ उनकी संताने शहर की ओर चले जाते हैं।।
तब मैं भी कुछ सहमा से कुछ डरा से खुद को पाता हूं।
होता यह सब सामने मेरे और मैं कुछ भी नही कर पाता हूं।।
राहगीरों की महफ़िल में मैं जब भी बैठ जाता हूं
दुनिया भर की महल अटारी अमीरी भूल जाता हूं।।
सोचता हूँ करू जतन कैसे मैं इस लाचारी की
सर से लेकर पांव तक फैली इस बीमारी की
मिलकर रहने और मेहनत करने की बात मैं सबको बतलाता हूं।
क्योंकि मैं भी कई कई रातों में भूखा ही सो जाता हूं ।।
राहगीरों की महफ़िल में मैं जब भी बैठ जाता हूं,
दुनिया भर की महल अटारी अमीरी भूल जाता हूं।।
#Worldlabourday
~मोतीराम